रस परिभाषा और उसके प्रकार
रस का अर्थ है 'आनंद' । काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के प्रकार
रस चार प्रकार के होते है
v
विभाव
v
अनुभाव
v
व्यभिचारी भाव
v
स्थायी भाव।
विभाव :- विभाव वजह या
कारण या प्रेरणा होता है तो उसे इसीलिए
विभाव कहते हैं क्योंकि यह वचन शरीर, इशारों और मानसिक भावनाओं का विवरण करते हैं। विभाव दो प्रकार का होता हे |
अनुभावल:- जिसका उद्भव
वाक्य और अंगाभिनय से होता हे तो उसे
अनुभाव कहते हैं। यह विभाव का परिणामी है। यह एक व्यक्ति द्वारा महसूस अभिव्यक्ति
भावनात्मक भावनाएं हैं।
स्थायी भाव:- स्थायी भाव से
रस का जन्म होता हे तो जो भावना स्थिर
और सार्वभौम होती है उसे स्थायी भाव कहते हैं। विभाव अनुभव और व्यभिचार स्थायी
भावों का अधीन होते हैं। इसीलिए स्थायी भाव मुख्य बनता है।
व्यभिचारी या संचारी भाव :- मन में संचरण
करनेवाले (आने-जाने वाले) भावों को 'संचारी' या 'व्यभिचारी'
भाव कहते है।
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