सम्बन्धबोधक अव्यय
(2) सम्बन्धबोधक अव्यय
:- जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते ।
दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहते हैं।
यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।
जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि।
उदाहरण- वृक्ष के 'ऊपर' पक्षी बैठे है।
धन के 'बिना' कोई काम नही होता।
मकान के 'पीछे' गली है।
उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।
दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द 'धन' और 'काम' में सम्बन्ध दर्शता है।
तीसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द 'मकान' और 'गली' में सम्बन्ध दर्शाता है।
अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछे' शब्द सम्बन्धबोधक है।
विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-
सम्बन्धबोधक
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क्रिया-विशेषण
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दुकान 'पर' ग्राहक खड़ा है।
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दुकान 'पर' खड़ा है।
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मेज के 'ऊपर' किताबें है।
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मेज के 'ऊपर' है।
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सम्बन्धबोधक के भेद
प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है ।
(1) प्रयोग के अनुसार- (i) सम्बद्ध (ii) अनुबद्ध
(2) अर्थ के अनुसार- (i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक
(iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi)
विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi)
सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक
(3) व्युत्पत्ति के अनुसार- (i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक
(1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक - ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं। जैसे- धन के बिना, नर की नाई।
(ii) अनुबद्ध सम्बन्धबोधक- ऐसे सम्बन्धबोधकअव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं। जैसे- किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर , पुत्रों समेत।
(2) अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) कालवाचक- आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनन्तर, पश्र्चात्, उपरान्त, लगभग।
(ii) स्थानवाचक- आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर।
(iii) दिशावाचक- ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति।
(iv) साधनवाचक- द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, बल, कर, जबानी, सहारे।
(v) हेतुवाचक- लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते।
(vi)विषयवाचक- बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे।
(vii) व्यतिरेकवाचक- सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।
(viii) विनिमयवाचक- पलटे, बदले, जगह, एवज।
(ix) सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक।
(x) विरोधवाचक- विरुद्ध, खिलाप, उलटे, विपरीत।
(xi) सहचरवाचक- संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश।
(xii) संग्रहवाचक- तक, लौं, पर्यन्त, भर, मात्र।
(xiii) तुलनावाचक- अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने।
(3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) मूल सम्बन्धबोधक- बिना, पर्यन्त, नाई, पूर्वक इत्यादि।
(ii) यौगिक सम्बन्धबोधक- संज्ञा से- पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत।
विशेषण से- तुल्य, समान, उलटा, ऐसा, योग्य।
क्रियाविशेषण से- ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे।
क्रिया से- लिए, मारे, चलते, कर, जाने।
(3)समुच्चयबोधक अव्यय :-- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसा पद (अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधक' कहलाता है।
सरल शब्दो में- दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।
जैसे- यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और किन्तु आदि।
उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'- को जोड़ता है।
समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का सम्बन्ध उत्तरवाक्य से जोड़ता है।
इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है। जैसे- दो और दो चार होते हैं।
राम 'और 'लक्ष्मण दोनों भाई थे।
मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु 'सफल' न सका।
उपयुक्त पहले वाक्य में 'और ' शब्दों को जोड़ रहा है तथा दूसरे वाक्य में 'परन्तु ' दो वाक्यांशों को जोड़ रहा है। अतः ये दोनों शब्द समुच्चयबोधक है।
समुच्चयबोधक के भेद
इस
अव्यय के मुख्य भेद निम्नलिखित है-
(1) समानाधिकरण (2) व्यधिकरण
(1) समानाधिकरण (2) व्यधिकरण
(1) समानाधिकरण- जिन पदों या अव्ययों
द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधक' कहते है। इसके चार
उपभेद हैं-
(i) संयोजक- जो शब्द, शब्दों या वाक्यों को
जोड़ने का काम करते है, उन्हें
संयोजक कहते है।
जैसे- जोकि, कि, तथा, व, एवं, और आदि।
उदाहरण -गीता ने इडली खायी 'तथा ' रीता डोसा खाया।
जैसे- जोकि, कि, तथा, व, एवं, और आदि।
उदाहरण -गीता ने इडली खायी 'तथा ' रीता डोसा खाया।
(ii) विभाजक- जो शब्द, विभिन्नता प्रकट करने
के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें
विभाजक कहते है।
जैसे- या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे, न.... न, न कि, नहीं तो, ताकि, मगर, तथापि, किन्तु, लेकिन आदि।
उदाहरण- कॉपी मिल गयी 'किन्तु' किताब नही मिली।
जैसे- या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे, न.... न, न कि, नहीं तो, ताकि, मगर, तथापि, किन्तु, लेकिन आदि।
उदाहरण- कॉपी मिल गयी 'किन्तु' किताब नही मिली।
(iii)विकल्पसूचक- जो शब्द विकल्प का
ज्ञान करायें, उन्हें
'विकल्पसूचक' शब्द कहते है।
जैसे- तो, न, अथवा, या आदि।
उदाहरण - मेरी किताब रमेश ने चुराई या राकेश ने। इस वाक्य में 'रमेश' और 'राकेश' के चुराने की क्रिया करने में विकल्प है।
जैसे- तो, न, अथवा, या आदि।
उदाहरण - मेरी किताब रमेश ने चुराई या राकेश ने। इस वाक्य में 'रमेश' और 'राकेश' के चुराने की क्रिया करने में विकल्प है।
(iv) विरोधदर्शक- पर, परन्तु, किन्तु, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि।
(v) परिणामदर्शक- इसलिए, सो, अतः, अतएव।
(2) व्यधिकरण- जिन पदों या अव्ययों के
मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें ' व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं। इसके चार
उपभेद है।-
(i) कारणवाचक- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि।
(ii) उद्देश्यवाचक- कि, जो, ताकि, इसलिए कि।
(iii) संकेतवाचक- जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु, कि।
(iv) स्वरूपवाचक- कि, जो, अर्थात, याने, मानो।
(i) कारणवाचक- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि।
(ii) उद्देश्यवाचक- कि, जो, ताकि, इसलिए कि।
(iii) संकेतवाचक- जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु, कि।
(iv) स्वरूपवाचक- कि, जो, अर्थात, याने, मानो।
(4)विस्मयादिबोधक अव्यय :- जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट
करें, उन्हें
'विस्मयादिबोधक' कहते है।
दूसरे शब्दों में-जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
इन अव्ययों के बाद विस्मयादिबोधक चिहन (!)लगाते है।
दूसरे शब्दों में-जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
इन अव्ययों के बाद विस्मयादिबोधक चिहन (!)लगाते है।
जैसे-
हाय! अब मैं क्या करूँ ? हैं
!तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ
'हाय!' और 'है !'
अरे !पीछे हो जाओ, गिर जाओगे।
इस वाक्य में अरे !शब्द से भय प्रकट हो रहा है।
अरे !पीछे हो जाओ, गिर जाओगे।
इस वाक्य में अरे !शब्द से भय प्रकट हो रहा है।
विस्मयादिबोधक
अव्यय है, जिनका
अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।
विस्मयादिबोधक
के निम्नलिखित भेद हैं-
(i)हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।
(ii)शोकबोधक- अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय,त्राहि-त्राहि आदि।
(iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!,ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि
(iv) क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि।
(v) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।
(vi)सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि।
(vii)भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि।
(i)हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।
(ii)शोकबोधक- अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय,त्राहि-त्राहि आदि।
(iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!,ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि
(iv) क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि।
(v) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।
(vi)सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि।
(vii)भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि।
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